लेखक: मोनू शर्मा राय
भारत एक एसा देश है जिसे बहार से आए लोगो ने अपने अपने हिसाब से लुटा| समय दर समय हमारे देश को लुटा गया| प्रथम स्वतंत्रता सेनानी में से एक स्वामी दयानन्द सरस्वती का मानना था आर्य वर्त को आर्यदेश से कोई नहीं निकल सकता| हमे गुलाम बनाने में 100 वर्ष लगे है उसी तरह हमे आजादी पाने में भी 100 वर्ष लगेंगे| अतः आज के दिन 23 मार्च को भरत के सहीद दिवस(Martyrs’ Day Mar 23) के मौके पर जाने भारत के 3 सपूतो की कहानी जानेंगे जिसे ब्रिटिश सरकार ने डर से उन्हें शहीद कर दिया गया|
भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फंसी की सजा क्यों सुने गई:
आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को ब्रिटिश सरकार के द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी| तीनों ने लाला लाजपत राय का मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे पी सांडर्स की हत्या कर दी थी| फांसी के समय इन आजादी के दीवानो की उम्र बहुत कम थी| इसक दिन के बाद ही देश में 23 मार्च के दिन को शहीद दिवस के तौर पर पुरे भारत में मनाया जाता है|
सूली पर चढ़ते समय
भगत सिंह की उम्र 24, राजगुरु की 23 और सुखदेव लगभग 24 साल के थे. इतनी कम उम्र में ही इन तिन भारत के क्रांतिकारियों की कोशिशों से पूरी अंग्रेज हुकूमत घबरा गई थी| परिणाम स्वरूप हुआ ये कि साल 1928 में राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह तीनों साथियों ने योजना बनाकर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी |
लाला लाजपत राय की मौत के जिम्मेदार इस अधिकारी की हत्या के बाद वे चुप नहीं बैठे, बल्कि हुकूमत के खिलाफ अपना आक्रोश जताने के लिए सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया| इससे ब्रिटिश सरकार अत्यधिक चोकन्ना हो गई और इन तीनो वीर सपूतो के प्रति आक्रोश की भवना ने अंग्रेज सरकार को दिन रत इन्हें खोजने की जिद्द को उजागर किया |
इस बम फेंकने की घटना के बाद एसेंबली में अफरा-तफरी मच गई| चाहते तो वे आराम से भाग सकते थे,लेकिन वे भागे नहीं, बल्कि वही दटे रहे और साथ में पर्चे भी फेंकते रहे| उनका इरादा था कि इससे आजादी को लेकर भारत के लोगो में अंग्रेजो के प्रति रोष और भड़के| और उनके सोचनुसार यही हुआ, लोग बेकाबू हो गए और अंग्रेजी सरकार को लाहौर में धारा 144 लगानी परी|
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फंसी के एक दिन पहले की घटना:
देश के लिए अपनी जान हंसते-हंसते कुर्बान कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 के दिन फांसी की सजा दी गई थी मगर उनको फांसी का दिन 24 मार्च 193 1 को तय हुआ था, परन्तु अंग्रेजी सरकार ने लोगो के आक्रोश को देखते हुए उसमें बदलाव कर दिया और जो तारीख तय किया गया था उस तारीख और समय से पहले उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया, देश की आजादी के लिए भगत सिंह,राजगुरू और सुखदेव तीनो ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए और देश के लिए अपने प्राण त्याग कर दिए, देश के लिए अपनी जन का समर्पण करना, ऐसी मिसाल बहुत कम ही देखने को मिलती है।
एसा कहा जाता है की तीनों वीर सपूतों को फांसी दिए जाने की खबर से देश के लोग भड़क गए थे और अपना आक्रोश अंग्रेज सरकार के प्रति निकालने हेतु वे लोग अंग्रेज दफ्तर पहुचने हेतु निकल चुके थे,तीनों की फांसी को लेकर पुरे देश में विरोध प्रदर्शन चल रहे थे,अंग्रेजो के प्रति लोगो का आक्रोश चरम सीमा पर पहुंच चुका था और इससे अंग्रेज सरकार डर गई, उन्हें लगा कि वे सायद दिए गए तारीख में फासी न दे सकेंगे और माहौल बिगड़ने की आशंका है, इसलिए उन्होंने फांसी के दिन और टाइमिंग में बदलाव कर दिया और दिए गए तारीख से एक दिन पहले यानि 23 मार्च को फंसी दे दी गई थी |
फांसी में चढ़ने से पहले भगतसिंह ने एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने भारत की आजादी का मोल समझाते हुए देश के युवाओं से आंदोलन में हिस्सा लेने की बात कही थी| इस पत्र के लिखे एक अंश आज भी काफी पढ़ा जाता है-
जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना भी नहीं चाहता| आज एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं| अब मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता| मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है| क्रांतिकारी दलों के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता| आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं| लेकिन अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धम पड़ जाएगा| ऐसा भी हो सकता है कि मिट ही जाए| लेकिन मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी| इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा|
फांसी की तारीख और समय बदलने से कैदीयो का फुट था गुस्सा:
एसा कहा जाता है कि 23 मार्च,1931 समय 4 बजे लाहौर सेंट्रल जेल के वॅार्डन ने सभी कैदियों को निर्देश देते हुए कहा कि सभी अपने-अपने बैरक में लौट जाएं,यह सुनकर सभी कैदी हैरत में पर गए और सभी को अपने अपने बैरक में डाल दिया गया।
वॅार्डन के निर्देसनुसार सभी कैदी अपने बैरक में लौट आए लेकिन एक सवाल सभी को परेशान करता रहा की एसा क्या होगा? जो हमे अभी अपने अपने बैरक में जाने को कहा गया है। तभी जेल के नाई ने हर कमरे के पास से गुजरते हुए दबी हुई और चुपचाप आवाज में बताया कि आज रात भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी होने वाली है|
इस खबर से सभी कैदी बेहद गुस्से मे आ गए, उन्होंने कहा की ऐसे कैसे ब्रिटिश सरकार बिना कानूनी कार्रवाई को पूरा करे बिना ऐसा फैसला सुना सकती है। वहीं भगत सिंह को अगले दिन 24 मार्च सुबह 4 बजे की जगह उसी दिन 23 मार्च को शाम 7 बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा|
सहिदो के फंसी के दिन की कहानी:
जब भगत सिंह ने एसा सुना की आज के दिन ही उनका आखरी दिन होगा,तब उन्होंने अंग्रेजी ठाणे से एक बात कही कि क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे| थोरे समय के अंतराल के बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर लाया गया।
तीनों का वज़न तोलने के बाद तीनो को कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े दिए गए ताकि वह अपना आखरी वस्त्र धारण कर सके|
परन्तु उनके चेहरे को न ढाका गया बल्कि उन्हें खुले रहने दिए जैसे ही जेल की घड़ी में 6 बजा सभी को अचानक ज़ोर-ज़ोर से ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान आज़ाद हो’ के नारे सुनाई देने लगे| ये नारे और कोई नहीं बल्कि तीनो सपूत की मुह से निकल रहे थे, वे चाहते थे की उनकी बलिदान को भारत के लोगो की नसों में आजादी की लहर को जगा सके|
भगत सिंह ने अपनी माँ को दिया गया वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख़्ते से ‘इंक़लाब ज़िदाबाद’ का नारा लगाएंगे, सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर चढ़ने की मंजूरी दी । जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख़्तों को पैर मार कर हटा दिया, इस तरह भारत के तीनो सपूत ”इन्कलाब जिंदाबाद” और ”भारत माता की जय” के नारे लगाते हुए शाहिद हो गए|
काफी देर तक तीनो वीर शहीदों के शव फांसी के तख्तों से लटकते रहे। अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया , ऐसे ही देश के लिए ये तीनों नौजवानों ने अपनी प्राणों का त्याग कर दीये | ये देश के युवाओं के लिए बहुत बड़ी मिसाल बन गई कि देश से अपनी मातृभूमि से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
27 सितंबर शुक्रवार , 1907 को पंजाब के बंगा गांव के जारणवाला में जन्मे थे भगत सिंह जो अब पाकिस्तान में है| वे बचपन से ही निडर थे| बचपन में जब उन्हें स्कूल में भेजा गया था,तब उन्होंने किसी कारन अदालत में पेश किया गया था,जब जज शहब ने उनसे पुछा की तुम्हारा नाम क्या है तब उन्होंने जवाब दिया आजाद| आगे जब जज साहब ने पुछाकी कम क्या करते हो तो उन्होंने कहा आजादी दिलाने का,अतः यह सबूत है की वो एक निडर और मेधावी लारका था| जज ने उन्हें बीस कोरे मरवाए और चोर दिया उस बच्चे को| यही से एक स्वतंत्रता सेनानी की सुरुवात हुई|
वे स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में पले-बढ़े| उनके पिता किशन सिंह चाचा सरदार अजीत सिंह भी महान स्वतंत्रता सेनानी थे| भगत सिंह का नाम करतार सिंह सराभा था| गदर आंदोलन के बाद वे क्रांतिकारी के रूप में उभरे | 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद भगत सिंह अमृतसर पहुंचे| वे लाला लाजपत राय को अपना गुरु मानते थे अतः एक आन्दोलन में विरोध प्रदर्शन के दोरान ब्रिटिश अधिकारी सेंदर्ष की घोषणा से उनकी मृत्यु हो गई| अतः भगत सिंह ने उन्हें गोली मर कर अपने गुरु की हत्या का बदला ले लिया था| इसी कारन बहुत छोटी उम्र में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया|
शिवराम हरी राजगुरु का जीवन परिचय:
शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 1908 में हुआ था| वे पुणे जिले के खेड़ा गांव में जन्मे थे | बचपन में ही पिता को खोने के बाद वाराणसी में अध्ययन और संस्कृत सीखने चले गये| वही पर उनकी मुलाकात कई क्रांतिकारियों से हुई| वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हुए| और अंग्रेजो के प्रति उन्होंने मोर्चा जमाना शुरू किया| अतः धीरे धीरे ब्रिटिश साम्राज्य के दिल में इन्होंने डर पैदा किया| 19 दिसंबर 1928 को राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मार दी,और 28 सितंबर 1929 को गवर्नर को मारने की कोशिश में उन्हें अगले दिन पुणे से गिरफ्तार किर लिया गया | फिर बाद में उन्हें भगत सिंह के साथ ही फांसी दी गई|
सुखदेब थापर का जीवन परिचय:
सुखदेव थापर का जन्म 15 मई, 1907 को हुआ था| ब्रिटिश राज के क्रूर अत्याचार से वे आहत थे और इसी कारण वे क्रांतिकारियों के साथ शामिल हो गए| हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बने| वे पंजाब और उत्तर भारत के क्षेत्रों में क्रांतिकारी सभाएं की, लोगों के दिल में जोश पैदा किया और जनसाधारण को अंग्रेजो के प्रति आक्रोश पैदा किया| उन्होंने कुछ अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ की शुरुआत भी की| लाहौर षड्यंत्र मामले में इन्हें भी सजा सुनाई गई और राजगुरु तथा भगत सिंह के साथ इन्हें भी फंसी की सजा सुना दी गई| और 23 मार्च को साम 7 बजे तीनो को साथ में फंसी दे दी गई|
तो ये थी सहीद दिवस के मौके पर जाने भारत के 3 सपूतो की कहानी (Martyrs’ Day Mar 23, 2021? IN HINDI)
की कहानी जिसमे हमने सारी जानकारी अपने पाठको को देने की कोशिस की है| जिससे हमारे पाठक को किसी दुसरे आर्टिकल में जाने की जरूरत न हो|
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