ASSAY-ON-GUDI-PADWA-दोस्तों हमारा देश भारत विविधताओं का देश है| हमारे देश में अनेक संस्कृति का वास है,और सभी संस्कृति को मनाने वाले लोग अलग अलग है| हम सबके संस्कृति का सम्मान करते हुए सबके पूजा त्यौहार में सारिख होते है| उनके सुख दुःख में उनके साथ रहते है| इतनी सारी संस्कृतियो के मेलजोल का गढ़ भारत है| इसी तरह महाराष्ट्र में एक उत्सव गुडी परवा बहुत धूम धाम से मनया जाता है| अतः हमलोग आज ASSAY-ON–GUDI-PADWA-MASSAGE-QUOTES-IN 2021/ गुडी पडवा की पूरी जानकारी जाने हिंदी में? के बारे में जानेंगे| इस आर्टिकल में हम गुडी परवा से सम्बंधित साड़ी जानकारी को उजागर करेंगे|
ASSAY-ON-GUDI-PADWA गुडी परवा का महत्व 2023:
गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र सहित,आंध्र प्रदेश और गोवा के साथ दक्षिण भारत के राज्यों में बरे हर्षो-उल्लाश से मनाया जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष को गुड़ी पड़वा का त्यौहार बरे धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन को नव-संवत्सर के रुप में समस्त देश में मनाया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार इस पर्व की कुछ खास मान्यताएं हैं। गुड़ी ध्वज अर्थात झंडे का नाम है और पड़वा, प्रतिपद की तिथि को कहा जाता है। एसा मानना है की इस दिन भगवान ब्रह्मा ने श्रृष्टि का निर्माण किया था।
भारत के दक्षिण में गुड़ी पड़वा की लोकप्रियता का कारण इस पूजा से जुड़ी कहानियों से समझा जाता है। दक्षिण भारत रामायण काल में बंदरो का मुखिया बालि का राज्य हुआ करता था। जब भगवान श्री राम को पता चला की रावण सीता माता को अपहरण कर ले गये हैं,तब माता सीता को वापस लाने के लिये भगवान राम को लंकापति रावण से युद्ध करने के लिये सेना की जरुरत थी। बनवास के दौरान भगवान राम जब दक्षिण भारत पहुचे तब उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने बालि के अन्याय को बताते हुए भगवान राम से अपनी सहायता की गुहार लगाई। अतः भगवान श्री राम ने तत्कालीन रजा बालि का वध कर दक्षिण भारत के प्रजाओ को उनसे मुक्त करया। एसा कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ही दिन था जिस कारण इस दिन को गुड़ी यानि विजयपताका को फहराया जाता है।
गुडी परवा के दिन लोग अपने घरों में आम के पत्तों की माला बनाकर उसे सजाते हैं। आंध्र प्रदेश,कर्नाटक तथा महाराष्ट्र में इसे हर्षो उल्लास से मनाया जाता है।इस दिन किसानो के घर फसल होने एवं घर में समृद्धि आने की आशाएं भी लोग कामना करते हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इस पर्व का विशेष महत्व है। गुड़ी पड़वा के दिन जो भोजन बनाये जाने है वे खास तौर पर स्वास्थ्य वर्धक होते हैं। चाहे आंध्र प्रदेश में बांटा जाने वाला प्रसाद पच्चड़ी हो और या फिर पुरे महाराष्ट्र में बनाई जाने वाली मीठी रोटी का पूरन-पोली हो। पच्चड़ी के बारे में एसा कहा जाता है कि खाली पेट इसका सेवन करने से चमरे का रोग दूर होने के साथ लोगो का स्वास्थ्य बेहतर होने में मदद मिलती है।वही मीठी रोटी भी गुड़ तथा नीम के फूल आदि से बनती है।
इसी दिन नवरात्र की भी प्रारम्भ होती हैं जिस कारन यह पूजा का उल्लास पूरे देश भर में अलग-अलग रुपों में देखा जाता है,दुर्गा पूजा के साथ रामनवमी का दिन समाप्त होता है।
हिंदू नव यानि नए संवत्सरारम्भ के दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। यह चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा को होता है। इसे उगादि भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन से नववर्ष की शुरूवात होती है। गुड़ी पड़वा मंगलवार 13 अप्रैल 2021
तिथि का प्रारम्भ 12 अप्रैल, 2021 सोमवार,सुबह 8 बजे एवं
तिथि की समाप्ति 13 अप्रैल, 2021 मंगलवार को सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक होगी|
कैसे मनाया जाता है गुडी परवा जाने 2023 में:
पुरे महाराष्ट्र राज्य में इस दिन को कई प्रकार के जुलूसो का आयोजित किया जाता हैं। घर के बच्चो को मेले का शैर कराने घर के बारे बुजुर्ग लकर जाते है| लोग नए-नए कपड़े पहनते हैं,मित्रों एवं परिवारजनों के साथ त्यौहार का आनंद लेते हैं। मनुष्य अपने-अपने घरों में अलग-अलग तरह के व्यंजन बनाते हैं। महाराष्ट्र में इस पर्व के दिन मीठे चावल बनाए जाते हैं। यह पर्व सूर्योदय से शुरू होकर पूरे दिन चलते हैं।
गुडी पडवा से जुरे कुछ रोचक तथ्य:
पूजा के विधि विधान के अलावा इस पर्व से अहरित कुछ रोचक तथ्यों की जानकारी हमे अलग-अलग लोगो के द्वारा मिलती रहती है क्या है आइये जानते है:
गुड़ी पड़वा को महारष्ट्र के लोग नए साल की शुरुआत मानते हैं। इस दिन लोग नई फसल की पूजा करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि गुड़ी को घर में लाने से बुरी आत्मा दूर रहती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।
विक्रम संवत हिंदू पंचांग के तहत्त इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था।
छत्रपति शिवाजी ने युद्ध जीतने के बाद पहली बार गुड़ी पड़वा को मनाया था।इसी के बाद हर साल मराठी लोग इस परंपरा का पालन करते हैं।
लोग इस पर्व के दिन नीम की पत्तियों को खाकर दिन की शुरूवात करते हैं। एसा कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ऐसा करने से खून साफ होता है और शरीर में मजबूत आती है।
इस पर्व को मणिपुर में भी मनाया जाता है
2021 में गुडी पडवा के कुछ अंतिम सब्द:
तो यह थी हमारी पोस्ट जिसमे हमने दुसी परवा क बारे में अपने पोस्ट को आपके साथ साझा किया है, इस पोस्ट में हमलोगों ने ASSAY-ON-GUDI-PADWA-MASSAGE-QUOTES-IN 2023/ गुडी पडवा की पूरी जानकारी जाने हिंदी में? की साड़ी जानकारी देने की कोशिस की है जिससे हम अपने पाठक को पूरी जानकारी दे सके एवं हर छोटी से छोटी जानकारी दे सके ताकि हमारे पाठक को किसि दुसरे पोस्ट अथवा आर्टिकल में जाने की जरुरत न हो|
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यदि आप Baba shyam ji ki katha के बारे में जानने चाहते है तो यह पोस्ट अपक लिए है, जसमे हम अपने पाठको के लिए Baba shyam ji ki katha से जूरी हर छोटी से छोटी जानकारी अपने पाठको क लिए देने की कोशिश की है जिसे हम पाठको के हर प्रश्नों के उत्तर दे सके|
बाबा श्याम का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले के खाटू सहर में स्थित है| श्याम बाबा को मोर्वी नंदन और खाटू नरेश सहित और कई नाम से जाना जाता है| नीले घोड़े पे सवार होने के कारन नीले घोड़े वाले के नाम से भी बाबा श्याम को जाना जाता है| शीश के दानी खाटू श्याम के जन्मदिन को फाल्गुन महोत्सव के रूप में खाटू नगरी में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है|
Baba shyam ji ki katha में शीश के दानी खाटू श्यामबाबा का प्रारंभिकजीवन ::
खाटू श्याम के बचपन का नाम बर्बरीक था | उनकी माता का नाम मोर्वी और पिता का नाम घटोत्कच था जो महाबली भीम और हिंदीबाके पुत्र थे| बचपन से ही वह एक वीर योद्धा थे | युद्ध-कला उन्होंने अपनी माता मोर्वी और भगवानश्री-कृष्ण से सीखी थी|
बर्बरीक ने कई वर्षो तक नव दुर्गा की तपस्या की और अंत में उन्हें प्रसन्न करने में कामयाब हो गए,उन्ही से उन्हें तिन आमेघ बाण प्राप्त हुए इस प्रकार उन्हें तिन बाण धारी के नाम से भी जाना जाता है|अग्निदेव ने बालक बर्बरीक से प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया था ,जो उन्हें तीनो लोको में विजयी बनाने में समर्थ था|
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के बलिदान से खुश होकर उन्हें बरदान दिया की कलयुग में उन्हें(बर्बरीक को) कृष्ण के कई नामों में से एक श्याम नाम से पूजे जाएँगे| कृष्ण ने वरदान में यह भी कहा था की कलयुग में जो भक्त सच्चे मन और प्रेमभाव से तुम्हारी पूजा उपासना करेंगे उनकी सभी मनोकामना सफल होंगे और सभी कार्य सफल होंगे |
शीश के दानी Baba shyam ji ki katha :
शीश के दानी Baba shyam ji ki katha की शुरुआत मध्यकालीन समय से होतीहै,जब कौरवों और पांडवो के बिच महाभारत के युद्ध की बात आती है| और पुरे संसार में यह बात आग की तरह फ़ैल जाती है की महाभारत का युद्ध की शुरुआत होने वाली होती है,यही बात बालक बर्बरीक के कानो तक पहुचती है,और वह भी युद्ध में भाग लेने के लिए इछुक होते है| बर्बरीक युद्ध में सामिल होने के लिए अपने माता का आशीर्वाद लेते है और अपनी माता से यह वादा करते है की जो भी पक्छ हार रहा होगा वह उन्ही का साथ देंगे| यह कहकर वह अपने नीले घोड़े पे सवार होके युद्ध में शामिल होने के लिए निकल जाते है|
भगवन श्री कृष्ण को जब यह बात पता चला की वीर बर्बरीक युद्ध में भाग लेने हेतु अपने तीनो बाण के साथ रणभूमि के तरफ आ रहेहै,तब श्रीकृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के सामने पहुचे उसकी शक्ति को देखने के लिए उन्हें (बर्बरीक) रोक कर उनकी(बर्बरीक की) हसी उराई?उस ब्राह्मण रूपी व्यक्ति ने वीर बर्बरिक को कहा,हे बालक तुम इतने बड़े महाभारत के युद्ध में सिर्फ तिन बाण के साथ क्या कर लोगे? यह सुनकर बर्बरीक ने श्री कृष्ण (ब्राह्मण) से कहा की ”हे ब्राह्मण मेरे इन तिन बानो में से एकमात्र बाण ही पूरी सत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है| एसा करने के बाद भी बाण वापस तुणीर में ही आएगा | यदि तीनो बानो का प्रयोग किया गया तो पुरे ब्रह्माण्ड का विनास निश्चित है| ”
यह जानकर भगवान श्री कृष्ण(ब्राह्मण) ने उन्हें(बर्बरीक को) चुनौती दि की ”इस पेड़ के सभी पत्तो को अपने बाण से भेद कर दिखाओ|” वे दोनों पीपल के वृक्ष के निचे खड़े थे| बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से बाण निकलकर ईस्वर का स्मरण करते हुए बाण को पेड़ की तरफ चलाया| बाण ने एक छन में वृक्ष के सभी पत्तो को भेद दिया और बाण श्री कृष्ण के पैरो के चारो तरफ घुमने लगा| क्युकी वृक्ष के एक पत्ते को कृष्ण ने अपने पैर के निचे दबाकर रखा था| बर्बरीक ने श्री कृष्ण को कहा की ”आप अपना पैर पत्ते के ऊपर से हटा ले वरना बाण आपके पैर को भेदते हुए पत्ते को छेद कर देगा|”
बर्बरीक की शक्ति को देखते हुए श्री कृष्ण ने उनसे पुछा की वह युद्ध में किस और शामिल होंगे, तभी बर्बरीक ने अपने माँ से किए हुए वादे को श्री कृष्ण के समक्ष रखा और कहा ”जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी का समर्थन वो करेंगे|” श्री कृष्ण यह जानते थे कि युद्ध में कौरवों की हार होगी और अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो युद्ध के परिणाम गलत होंगे,अतः श्री कृष्ण जो ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक के सामने आए थे उन्होंने बर्बरीक से दान मांगने की इक्षा जाहिर की| बर्बरीक ने उस ब्राह्मण के वचन को स्वीकार किया और दान मांगने को कहा; पश्चात ”श्री कृष्ण ने उनसे(बर्बरीक से) उनके शीश का दान माँगा|”
वीर बर्बरीक क्षणभर के लिए अचंभित हो गए और अपने वचन को निभाने का वादा करते हुए ब्राह्मण से कहा-”एक साधारण ब्राह्मण तो इस तरह का दान नहीं मांग सकता अतः ब्राह्मण से अपने वास्तविक रूप में आने का आग्रह किया |
श्री कृष्ण ने अपना वास्तविक रूप धारण किया और शीश दान का कारन बताते हुए कहा की; ”तीनो लोको में सर्वस्रेस्ट क्षत्रिय का शीश आहुति के रूप मेंयुद्ध आरम्भ होने के पहले युद्ध भूमि पूजन के लिए दीया जाताहै” इसलिए एसा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण विवश थे|
बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण से आग्रह करते हुए अपनी अंतिम इछा जाहिर किया की ”वह अंत तक महाभारत का युद्ध अपनी आँखों से देखना चाहते है|” अतः भगवान श्री कृष्ण ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की|बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न होकर कृष्ण ने बर्बरीक को सर्व श्रेष्ट वीर की उपाधि दी,और उनके शीश को युद्ध भूमि के निकट एक पहाड़ी पर सुसोभित किया जहा से बर्बरीक सम्पूर्णयुद्ध को अपनी नग्न आँखों से देख सकते थे |
फाल्गुन माह के द्वादसी को उन्होंने अपने शीश का दान किया था इसलिए उन्हें(बर्बरीक)शीश के दानीके नाम से जाना जाता है|
युद्ध समाप्ति के बाद पांडवो में आपसी विवाद होने लगा और सभी पांडवो ने श्री कृष्ण से पुछा ” हे भगवन युद्ध समाप्ति का श्रेय कीसे जाता है? अतः भगवन श्री कृष्ण ने कहा ”बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतः क्यों न उससे जाकर पूछा जाए ?की युद्ध जितने का श्रेय किसे जाता है?” यह जानकार सभी पांडवो ने बर्बरीक के शीश के तरफ पहाड़ी की और चल पड़े|
शीश के पास पहुचने के बाद पांडवो के पूछने के बाद बर्बरीक ने उत्तर दिया भगवन श्री कृष्ण ही युद्ध में विजई प्राप्त के सबसे महान पात्र है उनकी युद्ध निति ही सबसे निर्णायक थी| बरबरिक ने आगे कहा पुरे युद्ध में मैंने ”श्री कृष्ण का सुदरसन चक्र ही घूमता देखा जो शत्रूओ के रक्त बहा रहे थे और उनके आदेश पर महाकाली स्त्रुओ के प्राण कलम कर रहे थे और उनके रक्त का सेवन कर रहे थे|
श्री कृष्ण बर्बरीक के बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया की कलयुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे क्युकी उस युग में हारे का साथ देने वाले ही श्याम नाम धारण करेंगे| उनके शीश को खाटू नगर(वर्तमान में राजस्थान) में दफनाया गया इसी कारन उन्हें खाटू श्याम के नाम से भी जाना जाता है|
शीश के दानी खाटू मंदिर का निर्माण कैसे हुई?
एक गाय खाटू नगर में जहा बाबा का शीश दफनाया गया था उस स्थान पर आकर दूध की धारा अपने थनो द्वारा खुद बहा देती थी| बाद में उस स्थान की खुदाई करवाई गई जहा गाय दूध बहाती थी,वहां से बाबा का शीश प्रकट हुआ,जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सौप दिया गया | बाद में खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मंदिर निर्माण करने के लिए और उनका शीश मंदिर में सुसोभित करने को प्रेरित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने राजा को स्वप्न दिया| तत्पश्चात राजा के द्वारा उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया| कार्तिक माह एकादशी को शीश को मंदिर में शुसोभित किया गया,जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है|
प्रार्थमिक मंदिर 1027 इसवी ने रूपसिंह चौहान और उसकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था| मारवाड़ के शाशकठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई में मंदिर का निर्माण कराया| खाटूश्याम बाबा को देश में कई परिवार एक बड़ी संख्या में कुल देवता के रूप में पूजते है|
Baba shyam ji ki katha में बाबा श्याम के कुछ नाम:
मोर-छड़ी धारक:बाबा श्याम के मंदिर में हमेशा मोर पंख की बनी हुई छड़ी रखी हुई रहती है, इसीलिए बाबा श्याम कोमोर -छड़ी धारकभी कहा जाता है|
हारे का सहारा:बर्बरीक जिन्हें आज हमलोग श्याम बाबा के नाम से जानते है उन्होंने महाभारत के युद्ध में अपने माता और अपनी दादी को किएहुए वादा को निभाने के लिए युद्ध की तरफ कुञ्ज करते हैजिसमे उन्होंने अपने माता से यह वादा किया था की युद्ध में जो दल हार रहे होंगे वो(बर्बरीक) उन्ही का साथ देगा| हारे हुए के तरफ का साथ देने की प्रतिज्ञा उन्होंने की थी,इसीलिए श्री कृष्ण ने उन्हें कहा था की कल;युग में तुम्हे जो भी हरने वाला सच्चे मन से तुम्हारा गुणगान करेगा तुम्हारी कृपा हमेसा उसके साथ होगी| इसी कारण से बाबा श्याम कोहारे का सहाराके नाम से भी जानते है|
लखदातार: भक्तो की मान्यता रही है की कोई वस्तु अगर बाबा से मांगी जाती है तो बाबा उन्हें एक बार देने के बजाए लाखो बार देते है इसीलिए उन्हेंलखदातारके नाम से भी जाना जाता है|
शीश के दानी :एक ब्राह्मण द्वारा मांगे हुए दान को उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे अपने शीश का दान दे दिया था इसीलिए उन्हेंशीश का दानीकहा जाता है|
नीले घोड़े वाले की : बर्बरिक हमेसा से अपने यातायात के लिए नीले घोड़े का इस्तेमाल करते थे यहाँ तक की सश्त्रो में भी बताया गया है की जब वो अपने माता से किए वादे को निभाने के लिए युद्ध स्थल पर जाने के लिए घर से निकलते है तब अपने नीले घोड़े पर चढ़कर ही वो युद्ध के तरफ कुञ्ज करते है इसी कारन उन्हेंनीले घोड़े वाले कीके नाम से जाना जाता है|
तीन बाण धारी की : बर्बरीक ने कई वर्सो तक तपस्या करने के बाद उन्होंने नवदुर्गा को प्रसन्न किआ और उन्ही से बर्बरीक को तिन अमेघ बाण मिले थे और अग्नि देव ने परसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान की इसीलिए उन्हेंतिन बाणधारीकहा जाता है|
शीश के दानी खाटू श्याम के का मंदिर राजस्थान के खाटू शहर में स्थित है जहा फाल्गुन के महीने में देश विदेश से स्राधालू बाबा के दर्शन करने जाते है और अपनी घर परिवार के सभी संकट से बचने के लिए अपनी मनोकामना मांगते है और घर परिवार के सहारा का साथ मांगते है ताकि शीश के दानी बाबा श्याम अपना साया पुरे परिवार परबनाए रखे|
Baba shyam ji ki katha(शीश के दानी खाटू श्याम जी की कथा) से जुरे कुछ अंतिम शब्द:
तो यह थी वह पोस्ट जिसमे हमने baba shyam ji ki katha(शीश के दानी खाटू श्याम जी की कथा) से जूरी हर जनकारी अपने पाठको को देने की कोशिश की है जिससे हमारे पाठको को किसी दुसरे आर्टिकल में जाने की जरुरत न परे| और baba shyam ji ki katha(शीश के दानी खाटू श्याम जी की कथा) से जूरी हर जानकारी हमारी इस पोस्ट में उन्हें मिल सके|
उम्मीद है,आप सभी को यह पोस्ट अच्छा लगा होगा और अपलोगो को वैल्यू मिला होगा|अगर आपको हमारे पोस्ट अच्छा लगा क्यों कृपया इसे फेसबुकइंस्टाग्राम टि्वटर लिंकडइन व्हाट्सएप में शेयर जरूर करें एवं अगर आप किसी प्रकार का सुझाव हमें देना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट जरुर करें