लेखक: गुड्डू राय
हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग है,जिन्होंने अपने साहस का परिचय देते हुए हमारे देश को समय समय पे कई तरह के कठिनाइयों से बचाया है| आज के पोस्ट में हम THE UNTOLD STORY ABOUT RANA PUNJA BHILA के बारे में जानेंगे| और उनके योगदान को देखंगे|
ऐसे ही एक अद्रीस्य नायक राणा पूंजा भील के जीवन के बारे में आज हम इस ब्लॉग में जानेंगे| जिन्होंने अपने सौर्य के बल पर इतिहास के पन्नो में खुद का नाम दर्ज करवाया|
देश में जब मुगलों का आगमन हुआ तो मुग़ल शासको की इच्छा दिनों दिन बढती गई और धीरे धीरे उनकी इच्छा पुरे देश को गुलामी के बेरियो में जकरने कि जगी|
ऐसे ही भारत के एक बहुत बारे प्रान्त मेवार के राज्यों के तरफ मुगलों की दिलचस्पी बढ़ने लगी और मुग़ल शासक अकबर ने अपनी सेना को मेवार के तरफ कुंज करने की इजाजत दी| मेवार एक बहुत बरा प्रान्त था जिसे जितना इतना आसन नहीं था| उस समय देश में जाती प्रथा का प्रचालन था|
मेवार के रजा महाराणा प्रताप को मुग़ल शासक अकबर के नियत का पता चल चूका था अतः जब महाराणा प्रताप को लगने लगा की अकबर की सेना बहुत बरी है,और वह अकेले अपने प्रान्त की रच्छा नहीं कर पाएँगे तब महाराणा प्रताप ने एक ऐसे समुदाय के मुखिया से बात करने की सोची जिसकी कौशल और गुणवता के बारे में सुना था उन्होंने एक आदिवासी समुदाय के मुखिया पूंजा भीला के पास अपने दूत को बाप्पा रावल की तलवार के साथ भेजा और मेवार का साथ देने को कहा|
पूंजा भीला एक निडर और साहसी मुखिया थे उनके छेत्र से होकर गुजरना मुग़ल शासक अकबर के लिए आशन नहीं था, अतः अकबर ने भी अपने भी पूंजा भीला के सामने सानो सौकत का लोभ देने की कोसिस की और खुद से हाथ मिलाने की हिदायत दी|
पूंजा भील अपनी देशभक्ति दिखाते हुए महाराणा प्रताप की सहायता करने की सोची,पूंजा की यह घोषणा सुनते ही महाराणा प्रताप ने पूंजा को गले से लगाया और अपने भाई की तरह पूंजा को बताया |
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हल्दीघाटी का युद्ध:
सन्न 1975-76 में जब युद्ध नजदीक थी और मुगलों का संकट उभरा तब पूंजा भीला अपनी गार्सिया सेना को लेकर जिनकी संख्या लगभग 9000 थी हल्दी घटी के नजदीक डेरा दल दी|
मेवार तक पहुचने के लिए मुगलों को पूंजा भीला के छेत्र से होकर गुजरना था जो आसन नहीं था|
जब मुगलों का अकर्मण हुआ उस समय पूंजा भीला के कौशल और गोरिला निति के तहत लगभग मुगलों के 86000 सेना को मर गिराया और जो अंत की मुगलों टुकरी जो लगभग 12000 की थी उन्होंने घुटने टेक दी और एवं समर्पण कर दिया| यह युद्ध करीब 24 बर्षो तक चला था|
युद्ध की समाप्ति के बाद महाराणा प्रताप ने पूंजा भील को राणा की उपाधि से नवाजा और खुद को भील का भाई बताया| राणा के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में भील प्रतीक अपनाया गया है।
आरंभिक जीवन:
राणा पूंजा का जन्म 5 अक्टूबर पानरवा के राजपूत मुखिया दूदा सोलंकी के परिवार में हुआ था इनके दादा राना हरपाल थे। उनकी माता का नाम केहरी बाई था, उनके पिता का देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें पानरवा का मुखिया बना दिया गया। यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही भोमट के राजा’ बना दिए गए|
राणा पूंजा , अरावली पर्वतमाला में स्थित भोमट क्षेत्र के राजा थे , उन्होंने मजबूत सेना का गठन कर रखा था| राणा पूंजा सोलंकी के योगदान के फलस्वरूप ही मेवाड़ चिन्ह में उन्हें अंकित किया गया है , साथ साथ राणा पूंजा के नाम से पुरस्कार वितरित किया जाता है और कॉलेज और विद्यालयों की स्थापना की गई है
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रना पूंजा भील पुरस्कार:
रना पूंजा पुरष्कार एक राज्य स्तरीय पुरुष्कार है| यह पुरष्कार आदिवासी मूल के व्यक्ति के द्वारा दिया जाता है,यह पुरष्कार प्रथम बार 1986 में दिया गया था,यह पुरस्कार आदिवासी और मेवार घराने के बिच सहयोग जारी रखने के लिए सुरु किआ गया था
अतः दोस्तों देश में इसे बहुत से लोग है,जिनके बारे में हमें मालूम नहीं है, अतः ह, अपने इतिहास में जाए तो इसे महान एक अदृश्य नायक राणा पूंजा भील के बारे में जन सकते है जिसकी कुशल निति के कारन मुग़ल सेना हरने पर मजबूर हुई|
उम्मीद है आप लोगो को यह ब्लॉग आचा लगेगा और अपलोगो क वैल्यू मिलेगा |
धन्यवाद…..