2021 में जानना चाहते है,आंबेडकर जयंती की कहानी तो ये पढ़े? / ASSAY-BIO-QUOTES-MASAGES-ON-AMBEDKAR-JAYANTI

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लेखक:गुड्डू राय

हमारे देश में अनेक महान पुरुषो ने जन्म लिया है,उन्होंने समय समय पर अपने आप को सहीद कर के अपने देश के प्रति सम्मान प्रकट किया है| स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे व्यक्ति ने भारत की आजादी के लिए बहुत कार्य किये है,तथा उन्ही के जैसे बाबा साहब ने भी अपनी पूरी जिंदगी देश  की सेवा में बिता दी| आज हमलोग इस पोस्ट में  2021 में जानना चाहते है,आंबेडकर जयंती की कहानी तो ये पढ़े? / ASSAY-BIO-QUOTES-MASAGES-ON-AMBEDKAR-JAYANTI की पूरी कहानी जानेंगे|

2021 में जानना चाहते है,आंबेडकर जयंती की पूरी कहानी तो ये पढ़े? / ASSAY-BIO-QUOTES-MASAGES-ON-AMBEDKAR-JAYANTI

बाबा साहब अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे.उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती की तरह देश में व्याप्त कुरीतियों और छुआ -छूत के प्रति अपनी आवाज उठाई और देश के सभी वर्गो के लोगो ने उनका साथ भली भांति दिया| उन्हें बचपन से ही छुवा-छुत जैसे चीजो का समना करना परा| अतः उनके मन में छुवा-छूत को समाप्त करने की जिद्द बचपन से ही ठान लि थी | अपने अच्छे कर्मो तथा देश के प्रति बहुत कुछ करने के कारन डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर को 1990 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया|

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जीवनी:

नाम(NAME)

डॉ भीम राव आंबेडकर

माता का नाम (MOTHER NAME)

भिमबाई मुबर्दारकर

पिता का नाम (FATHER NAME)

रामजी मालोजी सकपाल

जन्म(BIRTH)

14 अप्रैल 1891

जन्म स्थान(BIRTH PLACE)

 महू,इंदौर,मध्यप्रदेश

पत्नी का नाम(WIFES NAME)

सबिता आंबेडकर

पेशा (OCCUPATION)

राजनेता

शुरुवाती जीवन:

सर बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्म इंदौर राज्य के पास महू नमक गावं में हुआ था,वे अपनी माता पिता के 14 वा संतान थे| उनके पिता तत्कालीन आर्मी में सूबेदार थे|  1894 में रिटायरमेंट के उपरांत बाबा साहेब का पूरा परिवार महाराष्ट्र के सतारा नमक गावं में बस गये | महारास्ट्र में बसने के कुछ दिनों के बाद ही उनकी माँ का देहांत हो गया, जिसके उपरांत बाबा साहेब के पिता ने दूसरी शादी कर ली,तथा मुंबई(बोम्बे) बसने की सोची| जिसके बाद अम्बेडकर जी की पूरी पढाई बॉम्बे में ही पूरी हुई|
1906 में जब वह 15 साल के थे उनका विवाह 9 साल की रमाबाई से करा दीया गया| 1908 में उन्होंने 12 वी की परीक्षा पास की| उन्हें छुआ छूत के बारे में बचपन से देखा था,अतः वे हिन्दू मेहर जाती के थे, जिन्हें नीचा समझा जाता था|  ऊँची जाती के लोग इन्हे छूना भी पाप समझते थे, जी कारण अम्बेडकर जी ने समाज में व्याप्त कई जगहो पर भेदभाव का सामना करना पड़ा| बाबा साहेब को भेदभाव का शिकार स्कूल में भी होना परता था,जहाँ वे पढ़ा करते थे|  उनकी जाती के बच्चों को क्लास के अंदर तक बैठने की अनुमति नहीं दि जाती थी| शिक्षक उनपर ध्यान नहीं देते थे, यहाँ तक की उनको पानी तक छूने की अनुमति नहीं दि जाती थी|
अपनी स्कूल की पढाई पूरी करने के उपरांत भीमराव जी आगे की पढाई के लिए बॉम्बे के एक कॉलेज में जाने का मौका मिला| पढाई में बहुत अच्छे होने के कारन तेज वे हर परीक्षा में सफल होते रहे,प्रतिभाशाली होने के कारन उन्हें बरोदा शहर के  गायकवाडो के राजा सहयाजी द्वारा 25 रूपए की स्कॉलरशिप प्रति माह मिलने लगी|
भीमराव ने राजनीती विज्ञान एवं अर्थशास्त्र विषय में 1912 में अपनी स्नातक पूरी कि|  उन्होंने अपने इन पैसे को अपने आगे की पढाई में लगाने का निश्चय किया और अपनी आगे की पढाई के लिए अमेरिका चले गए|
अमेरिका से लौटने के पश्चात राजा सहयाजी द्वारा उन्हें अपने पुरे राज्य के रक्षा मंत्री के पद को भीमराव को शौप  दिया| लेकिन छुआछूत नमक घातक बीमारी उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था| राज्य का इतना बार व्यक्ति होने के बावजूद उन्हें तिरश्कर का सामना करना परता था|
इतने बरे पद से तिरष्कृत होने के बाद वे बॉम्बे के गवर्नर की मदद मांगी और वे बॉम्बे के सिन्ड्रोम कॉलेज में राजनैतिक एवं अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए| भीमराव जी अपनी आगे की पढाई पूरी करना चाहते थे, इस कारण वे फिर भारत के बाहर इंग्लैंड जाने की सोचे, परन्तु इस बार उन्हों खुद के खर्चो का भार खुद उठाना था| लन्दन युनिवर्सिटी में उन्हें डीएससी नमक अवार्ड से सम्मानित किया|  भीमराव जी ने इंग्लैण्ड की पढ़ाई के बाद कुछ समय के लिए वे जर्मनी की बोन यूनीवर्सिटी में रहे|  यहाँ उन्होंने इकोनोमिक्स की पढाई मन से करी एवं 8 जून 1927 को कोलंबिया यूनीवर्सिटी से उन्हें Doctrate की उपाधि से सम्मानित किया गया|
भीमराव की सदी बहुत कम उम्र में हो गई थी अतः उनके पत्नी रमाबाई की बीमारी के चलते 1935 में म्रत्यु का शिकार होना परा|  सन्न 1940 में भारतीय संबिधान का ड्राफ्ट पूरा करने के बाद उन्हें बीमारियों का शिकार होना परा| अपना  इलाज के लिए वे बॉम्बे गए जहाँ पर उनकी मुलाकात एक ब्राह्मण डॉक्टर शारदा से हुई और डॉ के रूप में उन्हें नया जीवन साथी मिल |  उन्होंने अपनी दूसरी शादी अप्रैल15,1948 को दिल्ली में की थी|

छुआ-छूत के विरुद्ध आन्दोलन:

अबेडकर जी को बचपन से ही छुआ-छूत का शिकार होना परा था अतः जब वह भारत लौटे तब उन्होंने छुआछूत एवं जातिवाद के विरुद्ध आन्दोलन शुरू कीया| समाज में व्याप्त छुआ-छूत किसी बीमारी से कम नहीं था, जो निचे जाती के लोगो को घातक बीमारी की तरह जकर चूका था |
 ये बीमारी देश के कई हिस्सों में तोरे जा रही थी| बाबा साहेब ने कहा नीची जाति एवं दलित लोगो के लिए देश में अलग से चुनाव की प्रक्रिया होनी चाहिए|  उन दलित लोगो को भी पूरा अनुमति मिलनी चाहिए कि वे देश के चुनाव और देश के बनाव में हिस्सा ले सके|
अम्बेडकर जी ने इन लोगो के लिए आरक्षण की बात सामने रखी| वह देश के कई हिस्सों में भ्रमण किये एवं वहां के लोगों को समझाते हुए कहा की देश में व्याप्त जो प्रथा प्रचलित है वो सामाजिक बुराई है,इस आडम्बरो को जड़ से उखाड़ फेंक देना चाहिए |
बाबा साहेब ने एक न्यूज़ पेपर ‘मूक्नायका’ नाम से शुरू किया| जिसमे एक बार एक रैली में उनके भाषण को सुनने के बाद कोल्हापुर नमक शहर के शाहूकर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, इस बात ने देश की राजनीतीक मंच को एक नई दिशा प्रदान की|

राजनीती में डॉ भीमराव का आगमन(ENTRY IN POLITICS BY AMBEDKAR):

सहकर के इस्तीफे वाले खबर ने अम्बेडकर जी के लिए राजनीती का द्वार हमेसा के लिए खोल दिया अतः 1936 में उन्होंने स्वतंत्र मजदूर पार्टी का निर्माण किया| 1937 के केन्द्रीय विधानसभा चुनाव के वक्त उनकी पार्टी को 15 सीट की जीत मिली| जो की उनके लिए एक बरी उपलब्धि थी| अम्बेडकर जी की इस पार्टी को आल इंडिया शीडयूल कास्ट पार्टी के रूप में बदल दिया गया|
 इस पार्टी की तरफ से उन्होंने 1946 में संविधान सभा के चुनाव में खड़े होने का निर्णय लिया लेकिन दुविधा का विषय यह रहा की उनकी पार्टी ने चुनाव में बहुत ही ख़राब प्रदर्शन किया|गाँधी जी ने नीची जनजाति के लोगों को हरिजन नाम दिया था,जिसके कारन भारत के लोग उन लोगो को हरिजन ही बोलने लगे परन्तु डॉ अम्बेडकर को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं था की उन्हें किसी अलग नाम से बुलाया जाए अतः उन्होंने उस बात का खंडन किया| उनका कहना था की छोटे जाती के लोग भी हमारे समाज का हिस्सा है|  वे साधारण लोगों की तरह आम इन्सान है|
गांधीजी को उनका यह कथन पसंद आया एवं उनकी सलाह पर अम्बेडकर जी को रक्षा सलाहकार कमिटी में नियुक्त किया  गया| उन्हें वाइसराय एग्जीक्यूटिव कौसिल में पहलीबार लेबर मंत्री बनाया गया| आंबेडकर जी आजाद भारत के पहले कानून मंत्री बने दलित जनजाति से होने के बावजूद इतने बारे पद का मंत्री बनना उनके के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी|

आंबेडकर द्वारा संबिधान का निर्माण:

आजाद भरत का पहला कानून मंत्री बनने के बाद भीमराव अम्बेडकर को भारत का  संविधान गठन की कमिटी का चेयरमैन बनाया गया|  उन्हें स्कॉलर कहा जाता था क्युकी उन्हें अर्थशास्त्र का काफी ज्ञान था अतः अम्बेडकर जी ने देश के वीभिन्न जन- जातियों को एक दुसरे से जोड़ने हेतु पुल का काम किया| वे पुरे भारत के लोगो को  सामान अधिकार की बात पर हमेशा जोर देते थे, अतः भीमराव जी के अनुसार पुरे देश की अलग-अलग जाति जब तक एक-दुसरे से अपनी लड़ाई ख़त्म नहीं करेंगे, तब तक देश एकजुट कभी नहीं हो पाएगा| अतः इस प्रकार पुरे देश का भ्रमण करने के बाद भीमराव जी ने आजाद भारत के नायब सबिधन का निर्माण किया,जो आजतक प्रचलित है|
2021 में जानना चाहते है,आंबेडकर जयंती की पूरी कहानी तो ये पढ़े? / ASSAY-BIO-QUOTES-MASAGES-ON-AMBEDKAR-JAYANTI

बैध धर्म में अपने अनुयायियों के साथ परिवर्तन:

सन्न 1950 में श्रीलंका में एक बैध सम्मलेन के दौरान अम्बेडकर जी की आंखे खुल गई| वे बौध्य धर्म से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने अपने धर्म को परिवर्तन करने की जिद्द सी ठान ली| श्रीलंका से लौटने के बाद आंबेडकर जी ने बौध्य धर्म के बारे में एक किताब लिखी एवं उनका प्रकाशन कराया|
वह अपने आप को अपने अनुयायियों के साथ बौध धर्म को स्वीकार कर लिया| इस परिवर्तन को धर्म चक्र परिवर्तन कहा जाता है| अपने एक सभा के भाषण में भीमराव अम्बेडकर जी हिन्दू रीतीयो में व्याप्त जातिवाद की करी शब्दों में आलोचना की | 1955 में उन्होंने भारतीय बौध्य सभा का निर्माण किया| उनकी बुक ‘द बुध्या एव उनका धर्म’ का पब्लीकेसन उनके मरने के बाद हुआ|
14 अक्टूबर 1956 को भीमराव जी ने आम सभा का आयोजन किया जहाँ पर उन्होंने अपने 5 लाख अनुयायियों के साथ बौध्य धर्म में परिवर्तन करवाया| जिसे धर्म चक्र परिवर्तन के नाम से भी याद किया जाता है| उन्होंने नेपाल के काठमांडू में स्थित आयोजित ”4th वर्ल्ड बुद्धिस्ट कांफ्रेंस” में उपस्थित करने वहां पहुचे |

बाबा साहेब आंबेडकर की मृत्यु कैसे हुई?:

1954 से 1955 के दौरान अम्बेडकर जी की सेहत बहुत खराब होती जा रही थी| उन्हें कई तरह की बीमारी जैसे  सुगर यानि डायबीटीज,आँखों से कम दिखना एवं अन्य कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया था| 6 दिसम्बर 1956,को अपने दिल्ली वाले घर में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली| आंबेडकर जी अपने जीवन में बौध्य धर्म को अपना चुके थे | जिस कारन उनका अंतिम संस्कार बौध्य धर्म की विधिवत के रीती अनुसार हुआ था| इस तरह देश के संबिधान की रचईता का देहांत हुआ और हमलोगो का साथ इस महँ आत्मा ने छोर दिया|

आंबेडकर जयंती कब मनाया जाता है:

अम्बेडकर जी के अद्भुत कामों के कारन उनके जन्म दिवस 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के नाम से मनाया जाता है| इस दिन को नेशनल हॉलिडे के रूप में घोषित किया गया है |  इस दिन को सभी प्रकार के सरकारी संस्थान,स्कूल  एवं कॉलेज को बंद रखा जाता है|

2021 में आंबेडकर जयंती की कहानी के कुछ अंतिम शब्द(LAST WORD ON AMBEDKAR-JAYANTI 2021):

डॉ अम्बेडकर ने दलित व छोटे जनजाति के लिए आरक्षण की शुरुवात करी, उनके इस कार्यो के लिए देश आज भी उनका नमन करता है| देश के विभिन्न हिस्सों में एवं शहरों में उनके सम्मान के तौर पर उनकी मूर्ति बनाइ गइ है| अम्बेडकर जी को पूरा देश नमन करता है|

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